हाड़ी रानी का इतिहास | हाड़ी रानी सलूंबर | हाड़ी रानी की कहानी | Hadi Rani Salumber | Hadi Rani History In Hindi

हाड़ी  रानी के बलिदान की गाथा - " चुंडावत मांगी सेनाणी सर काट दे दियो क्षत्राणी "


सेनापति जब युद्ध में हाड़ी रानी सलह कंवर की निशानी लेकर आया तो सलूंबर के रावल रतन सिंह अति प्रसन्न हुए उन्हें लगा कि महारानी ने कोई उचित निशानी भेजी होगी मगर वह हुआ जो राजा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। 

जब सेनापति रानी कि निशानी लेने महल पहुंचा तो हाड़ी रानी ने सेनापति से कहा कि मैं जो तुम्हें निशानी दे रही हूं वह निशानी देख आपके महाराज का मन विचलित नहीं होगा और वे प्रेम मोह से मुक्त हो जायेगे। यह कह महारानी ने सैनिक की तलवार निकाली और अपना सिर काट दिया। 


हाड़ी रानी का बलिदान


सम्पूर्ण वृतांत -

मेवाड़ महाराणा राज सिंह का दूत शार्दूल जब सलूंबर के राजा रावल रतन सिंह के सम्मुख उपस्थित हुआ। रावल का विवाह हुए मात्र 2 दिन ही गुजरे थे ऐसी परिस्थिति में महाराणा का आदेश आते ही रावल रतन सिंह समझ चुके थे की युद्ध का पैगाम आया है। 

बात उस समय की है जब औरंगजेब अपना परचम संपूर्ण भारत में लहराने के लिए युद्ध नीति तथा षड्यंत्र रच रहा था उसने संपूर्ण भारत में हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दे दिया था। उसी समय मेवाड़ की राजगद्दी पर महाराणा राज सिंह विराजमान थे। वह महाराणा प्रताप की भांति परम शक्तिशाली और बलवान थे इन्होंने औरंगजेब को कई युद्ध में परास्त किया था तथा औरंगजेब के कई अभियानों को असफल किया था। 

महाराणा राज सिंह ने अपने उन क्षेत्रों को वापस प्राप्त कर लिया था जो मुगलों द्वारा कभी छीन लिया गया था इन क्षेत्रों को वापस हथियाने के लिए औरंगजेब मेवाड़ पर युद्ध के लिए रवाना हुआ। 

यह वह समय था जब महाराणा राज सिंह मेवाड़ से कुछ दूर थे उस समय मेवाड़ महाराणा ने अपने राजदूत शार्दुल द्वारा एक फरमान मेवाड़ के सलूंबर के राजा रावल रतन सिंह को भेजा। 


हाड़ी रानी का कटा हुआ शीश - दृश्य


हाड़ी रानी सलह कंवर -

सलह कंवर को बूंदी के हाड़ा शासक की पुत्री होने के कारण हाड़ी रानी कहा जाता है।

हाड़ी रानी का विवाह सलूंबर के रावल रतन सिंह से हुआ  रावल रतन सिंह की शादी हुए 2 दिन ही बीते थे। वह अपनी पत्नी के साथ बैठकर अपने जीवन के यादगार पलों की चर्चा कर रहे थे उसी समय उनका एक मित्र अर्थात महाराणा राज सिंह का राजदूत उनके दरबार में उपस्थित हुआ और रावल सूचना पाते ही उनसे रूबरू हुए उन्होंने जब राजदूत को फरमान पढ़ने को कहा तो एक पल के लिए शार्दुल भी हिचकी जाने लगा क्योंकि अभी रावल रतन सिंह का विवाह हुआ ही था की युद्ध का आदेश आ गया उस फरमान में लिखा था कि -

औरंगजेब की सेना मेवाड़ की ओर बढ़ रही है बिना विलंब किए औरंगजेब की सेना को रोकना होगा नहीं तो परिणाम काफी भयानक हो सकता है। रावल रतन सिंह युद्ध नीति के परम ज्ञानी थे। उनका बल तथा पराक्रम सराहनीय था उन्होंने कई युद्धों में महाराणा राज सिंह के साथ मिलकर दुश्मन सेना से लोहा लेकर विजय प्राप्त की थी। रावल रतन सिंह ने एक क्षण भी संकोच नहीं किया तथा सेनापति से कहा की युद्ध के लिए अपनी सेना तैयार करो। 


हाड़ी रानी का बलिदान -

रावल रतन सिंह जब युद्ध के लिए जाने लगे तब उन्हें अपनी पत्नी हाड़ी रानी सलह कंवर की याद सताने लगी क्योंकि उनका यूं अचानक युद्ध का निर्णय लेकर युद्ध के लिए रवाना होना शायद रानी को चिंतित कर रहा होगा। उन्होंने अपने मुख्य सेनापति को महल में भेजा और कहा कि रानी को कहना महाराज को उनकी याद सता रही है आप अपनी एक निशानी भेजे जिससे महाराज युद्ध में बिना किसी प्रेमपाश में बंध कर युद्ध लड़ सके। 

हाड़ी रानी ने यह सोच कर की सरदार रतन सिंह ऐसे तो उनकी याद में युद्ध ठीक ढंग से लड़ नहीं पाएंगे अतः उन्होंने सेनापति से कहा कि मैं जो तुम्हें निशानी दे रही हूं वह निशानी देख आपके महाराज का मन विचलित नहीं होगा और वे प्रेम मोह से मुक्त हो जायेगे। यह कह महारानी ने सैनिक की तलवार निकाली और अपना सिर काट दिया।


हाड़ी रानी का महल सलूंबर, उदयपुर


सेनापति के होश उड़ गए और उसका शरीर कांपने लगा। मगर महारानी की आज्ञा का पालन करते हुए उस शीश को उठाया और उसे ले गया।  

सेनापति जब युद्ध में रानी की निशानी लेकर आया तो रावल रतन सिंह अति प्रसन्न हुए उन्हें लगा कि महारानी ने कोई उचित निशानी भेजी होगी मगर वह हुआ जो राजा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था इधर सेनापति की आंखों में आंसू देख कर राजा आग बबूला हो गए एवं उन्होंने महारानी के सर पर रखा लाल कपड़ा हटाया तो महाराज की आंखें फटी की फटी रह गई महाराज के हृदय के टुकड़े टुकड़े हो चुके थे। हाड़ा सरदार के मोह के सारे बंधन टूट चुके थे। अब उन्हें उनका जीवन मानो यूं लग रहा था कि महारानी के साथ ही समाप्त हो चुका है। एवं उन्होंने महारानी के सिर को अपने गले में बांधकर युद्ध लड़ा तथा युद्ध में भारी रण कौशल दिखाया। 

इस युद्ध में हाडा सरदार तब तक नहीं रुका जब तक औरंगजेब की सेना को भागने पर मजबूर नहीं कर दिया। 

हाड़ी रानी के बलिदान पर साहित्यकार मेघराज मुकुल ने सेनाणी कविता लिखी जिसकी प्रसिद्ध लाइने है - 

  " चुंडावत मांगी सेनाणी 

                सिर काट दे दियो क्षत्राणी "

बड़ीसादड़ी नगर से 70 किमी समीप "दुर्गो का राजा" कहा जाने वाला चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित है। इस किले की सम्पूर्ण जानकारी नीचे पोस्ट लिंक में उपस्थित है।

आप उदयपुर से चित्तौड़गढ़ तक सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं, तो भगवान कृष्ण को समर्पित सांवरियाजी मंदिर, चित्तौड़गढ़ से लगभग 50 मिनट में राजमार्ग पर जा सकते हैं।  यह हाल ही में भव्य रूप से बनाया गया था और मनोरम दिखता है।
•श्री सांवरिया जी मंदिर करीब 450 साल पुराना मेवाड़ राज घराने
द्वारा निर्मित है। और अधिक आप जानने के लिए श्री सांवरिया सेठ पर Click करे।

ऐसे ही पराक्रम ओर शौर्य से भरी गाथा बड़ीसादड़ी के झाला मन्ना / झाला मानसिंह की है जिन्होंने महाराणा प्रताप की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी इनकी इस विचित्र और अद्भुत गाथा जानने के लिए Click करे। 

ऐतिहासिक जानकारियाँ को लिए नीचे LINKS पर CLICK करे -

Post a Comment

2 Comments

Please do not enter any spam link in the comment box.