झाला मान सिंह - बड़ीसादड़ी | बड़ीसादड़ी के झाला मन्ना का इतिहास | Jhala Manna History

महाराणा प्रताप का जीवन बचाने वाले उनके हमशक्ल बड़ीसादड़ी के झाला मानसिंह या मन्ना चित्तौड़गढ़ के बड़ीसादड़ी नगर के थे। बड़ीसादड़ी का झाला मन्ना महल, झाला मन्ना पैनोरमा। 

झाला मानसिंह बड़ी सादड़ी के राजपूत परिवार से थे। महाराणा रायमल ने बड़ी सादड़ी की जागीर झाला मानसिंह के पूर्वजों श्री अज्जा और सज्जा को दी थी।
 जिस प्रकार हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का मुकुट पहनकर झाला मानसिंह ( झाला मन्ना ) ने अपने प्राणों की आहुति देकर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के प्राणों की रक्षा की थी। उसी प्रकार खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा को झाला मन्ना के दादा झाला बीदा ने अपनी जान देकर बचाया था। इससे अधिक स्वामी भक्ति का परिचय तो और क्या होगा।

झाला मन्ना पैनोरमा बड़ीसादड़ी, चित्तौड़गढ़

झाला मन्ना का इतिहास 


सन 18 जून 1576, अकबर और महाराणा प्रताप के बीच लड़ा गया हल्दीघाटी युद्ध महाभारत के युद्ध की तरह ही भयानक और विशालकारी था। हल्दी घाटी के इस भीषण और महाप्रलयकारी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने अकबर के सेनापति महाराणा मानसिंह पर हमला किया तब उनके भाले के एक ही वार से राजा मानसिंह का महावत मारा गया। असंख्य मुगल सैनिक बोखला गए और  महाराणा प्रताप पर वार करने के लिए आगे बढ़े। इधर राजपूत सैनिक भी प्राण हथेली पर रखकर युद्ध लड़ रहे थे। महाराणा का एक एक सैनिक लाखो पर भी भारी पड़ रहा था।  महाराणा प्रताप के सिर पर मेवाड़ का राजमुकुट था। असंख्य मुगल सैनिक उसी को निशाना बनाकर वार कर रहे थे। महाराजा मानसिंह पर हमला करते समय चेतक के घायल हो जाने से मुगल सैनिकों ने महाराणा प्रताप के चारों और घेरा डालना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे महाराणा प्रताप संकट कि स्थिति में फसने लगे।  उसी समय स्थिति की गंभीरता को परख कर महाराणा प्रताप के स्वामीभक्त परमप्रतापी सरदार झालामान सिंह ( झाला मन्ना ) अपनी स्वामिभक्ति का प्रमाण देते हुए आगे बड़े और महाराणा प्रताप के सर से राज चिन्ह और मुकुट लेकर अपने सर पर धारण कर लिया और महाराणा प्रताप को युद्ध क्षेत्र से निकल जाने को कहा।
झाला मन्ना की चाल कामयाब रही और शत्रुओं ने झाला मन्ना को ही महाराणा प्रताप समझ लिया और उन पर आक्रमण करने के लिए टूट पड़े।  भीषण युद्ध हुआ, लेकिन अंत में हुआ वहीं की जो होना था। भीषण युद्ध करते करते झाला मन्ना वीरगति को प्राप्त हुए। वीरगति को प्राप्त होने से पहले ही झाला मन्ना मुगल सेना को पूर्व की ओर पीछे धकेल चुके थे
उनके इसी बलिदान की वजह से महाराणा प्रताप बाद में मेवाड़ को पुनः मुक्त करा पाए। इस प्रकार झाला मन्ना ने अपने स्वामी का शीश बचाने के लिए अपना शीश कटा दिया। उनके इस बलिदान की गाथा सदियों तक दोहराई जाएगी

बड़ीसादड़ी -


बड़ीसादड़ी को झाला मन्ना नगरी या झाला मान की नगरी भी कहा जाता है।  बड़ीसादड़ी चित्तौड़गढ़ जिले से 65 किमी की दुरी पर और उदयपुर जिले से 100 किमी की दुरी पर स्थित है।

झाला मान की नगरी-बड़ीसादड़ी 

 बड़ीसादड़ी में देखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण स्थानों में झाला मन्ना का महल, झाला मन्ना का पैनोरमा आदि है।  चलिए इन पर चर्चा करते है -

झाला मन्ना का महल -

बड़ी सादड़ी में झाला मन्ना का विशाल महल स्थित है। महाराणा रायमल द्वारा दी गई जागीरी पर जाला मन्ना के पूर्वजों द्वारा बनाया गया यह महल अत्यधिक सुंदर है। यह महल बड़ी सादड़ी शहर की सुंदरता को आसमान की असीमित ऊंचाइयों तक ले जाता है। महल के पास ही स्थित तालाब भी शहर की सौंदर्यता को बढ़ाता है।

झाला मन्ना का महल बड़ीसादड़ी 

झाला मन्ना पैनोरमा -

चित्तौड़गढ़, बड़ी सादड़ी के जुझारू वीर योद्धा झाला मन्ना का पैनोरमा बड़ीसादड़ी में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इसे देखने बड़ीसादड़ी शहर और आस पास से असंख्य लोग आते हैं। इसे देखने से लोगों का जोश और उत्साह बढ़ता है।

झाला मन्ना पेनोरमा, बड़ीसादड़ी 


 यहां पर स्थित घोड़े पर सवार झाला मन्ना की विशालकाय प्रतिमा हुबहू महाराणा प्रताप के दर्शन कराती है। इस पैनोरमा में झाला मन्ना के संपूर्ण जीवन तथा उनके बलिदान का विवरण चित्राया गया है। इसमें महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध का विवरण है।

झाला मन्ना जी की मूर्ति 

बड़ीसादड़ी नगर से 70 किमी समीप "दुर्गो का राजा" कहा जाने वाला चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित है। इस किले की सम्पूर्ण जानकारी नीचे पोस्ट लिंक में उपस्थित है।

बड़ीसादड़ी नगर से 45 किमी दूर भगवान श्री सांवरिया सेठ जी का भव्य मंदिर है। इनके दर्शन करने सम्पूर्ण भारत के श्रद्धालु आते है। मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी नीचे दी गई लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते है।

ऐतिहासिक जानकारियाँ को लिए नीचे LINKS पर CLICK करे -





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3 Comments

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